मैं उदय भान 'कनपुरिया' आप सभी का इस ब्लाग पर स्वागत करता हूँ। मैं अपने पिता श्री जगदीश चंद्र गुप्त एवं माता श्रीमती लक्ष्मी गुप्ता के आशीर्वाद से कविताओं की रचना करता हूँ। आशा करता हूँ कि आप सभी को पसंद आएँगी।आप मुझे विषय भेजेँ(कमेंट्स लिखकर), मैं आपको उनपर कविता देने का प्रयास करूँगा ।
Saturday, August 21, 2010
बाल कविता - मेँढ़क /FROG
कीचड़ में बैठा देखा , और टर्र -टर्र करता देखा ॥ देखा मैँने छोटा मेँढ़क , कभी -कभी मोटा देखा ॥ उल्टी जीभ पकड़ ले कीड़ा , बन जाता सांपोँ का भोज ॥ पूरे साल नजर नहिँ आता , बारिश में दिखता है रोज ॥ पैदल नहीं चला करता , यह कूद कूद कर चलता है ॥ पानी के गड्ढोँ , तालाबों में इसका घर रहता है ॥ - -उदय भान कनपुरिया
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बहुत सुन्दर बालकविता
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