मैं उदय भान 'कनपुरिया' आप सभी का इस ब्लाग पर स्वागत करता हूँ। मैं अपने पिता श्री जगदीश चंद्र गुप्त एवं माता श्रीमती लक्ष्मी गुप्ता के आशीर्वाद से कविताओं की रचना करता हूँ। आशा करता हूँ कि आप सभी को पसंद आएँगी।आप मुझे विषय भेजेँ(कमेंट्स लिखकर), मैं आपको उनपर कविता देने का प्रयास करूँगा ।
Thursday, August 19, 2010
कविता- सुंदरता
तुम सुंदर हो सुंदरता से। तुम कोमल ज्यादा सरिता से। तेरी बोली कोयल से प्यारी ।तू जग में है सबसे न्यारी । तू चले हिरन बल खा जाए। तुझे देख चाँद शर्मा जाए। तेरे बँधे केश से इंद्र विवश। लट खोले बादल बरस उठे। तेरे होंठो का रस पीने को। मैखाने देखो तरस उठे। ये नयन तीर से हैं तीखे। जिसे देख ये दिल डर जाता है। मर जाता है वह शख्स तभी । जब प्रेम रोग हो जाता है। - - उदय भान कनपुरिया
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वाह क्या बात है ....बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteबधाई
http://kavyamanjusha.blogspot.com/