मैं उदय भान 'कनपुरिया' आप सभी का इस ब्लाग पर स्वागत करता हूँ। मैं अपने पिता श्री जगदीश चंद्र गुप्त एवं माता श्रीमती लक्ष्मी गुप्ता के आशीर्वाद से कविताओं की रचना करता हूँ। आशा करता हूँ कि आप सभी को पसंद आएँगी।आप मुझे विषय भेजेँ(कमेंट्स लिखकर), मैं आपको उनपर कविता देने का प्रयास करूँगा ।
Sunday, August 15, 2010
बाल कविता -उन्नति
मैं भारत देश की उन्नति हूँ, मैं विश्व मुकुट सी सुंदर हूँ। मैं धर्म कर्म में लीन सदा, मैं जन जीवन की उन्नति हूँ। जो आशावादी होता है। वह मेरा साथी होता है। जो घोर निराशावादी है, मैं उनकी जीवन अवनति हूँ। आकाश में उड़ते पंछी हों, या मस्त कलंदर हाथी हों। वो सभी धरा के अंग सदा , मैं उन सब की भी उन्नति हूँ। ओ देश सपूतोँ उठ जागो , कर्मठ बनकर दौड़ो भागो। अब विश्व कि नजरें तुम पर हैं, रणधीर तुम्हारी उन्नति हो।-- उदय भान गुप्ता
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Thank You, Guptaji
ReplyDeleteHamain yah kavita bahut pasand aaye.
RPS