मैं उदय भान 'कनपुरिया' आप सभी का इस ब्लाग पर स्वागत करता हूँ। मैं अपने पिता श्री जगदीश चंद्र गुप्त एवं माता श्रीमती लक्ष्मी गुप्ता के आशीर्वाद से कविताओं की रचना करता हूँ। आशा करता हूँ कि आप सभी को पसंद आएँगी।आप मुझे विषय भेजेँ(कमेंट्स लिखकर), मैं आपको उनपर कविता देने का प्रयास करूँगा ।
Saturday, August 21, 2010
बाल कविता- बरसात
ये रिमझिम है, ये मध्यम है , ये गीली है, और तरल है ॥ प्यासा बोले ये अमृत है , गर्मी बोले ये राहत है ॥ धरती बोले मेरा शाँवर , बादल बोले मोर पसीना ॥ सूरज का घूँघट बन जाती , पृथ्वी का भर जाती सीना ॥ वर्षा से धरती सज जाती , हरे -हरे कपड़े सिलवाती ॥ फूलों का गजरा बालों में , गंगा- जमुना खूब नहाती ॥ बादल अपनी कड़ी कमाई , धरती माँ को देते हैं ॥ जिससे धरती फसल उगाती , हम सब जिंदा रहते हैं ॥ कुएँ बंद हैं ; बंद तलाब , झील है गायब ; नहरेँ ख्वाब ॥तारकोल सीमेँट बिछा है , हो वर्षा से कैसे लाभ ॥ इसीलिए बारिश बदनाम , बाढ़ कर रही काम तमाम ॥ बिन बारिश सूखा आता है , बारिश से आती है बाढ़ ॥ खेतों में बैठी विधवा की , आँखें तरसेँ जेठ अषाढ़॥ - - उदय भान कनपुरिया
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