Saturday, August 21, 2010

बाल कविता - मेँढ़क /FROG

कीचड़ में बैठा देखा , और टर्र -टर्र करता देखा ॥ देखा मैँने छोटा मेँढ़क , कभी -कभी मोटा देखा ॥ उल्टी जीभ पकड़ ले कीड़ा , बन जाता सांपोँ का भोज ॥ पूरे साल नजर नहिँ आता , बारिश में दिखता है रोज ॥ पैदल नहीं चला करता , यह कूद कूद कर चलता है ॥ पानी के गड्ढोँ , तालाबों में इसका घर रहता है ॥ - -उदय भान कनपुरिया

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर बालकविता

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