Thursday, August 19, 2010

कविता- सुंदरता

तुम सुंदर हो सुंदरता से। तुम कोमल ज्यादा सरिता से। तेरी बोली कोयल से प्यारी ।तू जग में है सबसे न्यारी । तू चले हिरन बल खा जाए। तुझे देख चाँद शर्मा जाए। तेरे बँधे केश से इंद्र विवश। लट खोले बादल बरस उठे। तेरे होंठो का रस पीने को। मैखाने देखो तरस उठे। ये नयन तीर से हैं तीखे। जिसे देख ये दिल डर जाता है। मर जाता है वह शख्स तभी । जब प्रेम रोग हो जाता है। - - उदय भान कनपुरिया

1 comment:

  1. वाह क्या बात है ....बहुत सुन्दर रचना !
    बधाई
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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