Friday, August 20, 2010

कविता- दाँतेवाड़ा के शहीदों को सलाम

चाँद की शीतलता है तुझमेँ, सूरज सा अंगार। तेज कीर्ति का तेरे मुख पर, कर्म तेरा श्रंगार। भूमि देश की पावन हो गई, फौजी तुझ सा पाकर। भूल न फिर हमको तुम जाना, दूजी दुनिया जाकर। नक्सलवादी बने राक्षस ,मानवता के दुश्मन ।उनका अंत बुरा होना है, घटिया उनका तन मन। हे भारत के वीरोँ तुमको, सभी सलामी देते हैँ। संभल जाएँ वो दुष्ट(नक्सली) अभी, जो सबका जीवन लेते हैं॥ - उदय भान कनपुरिया

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