Wednesday, August 11, 2010

बाल कविता- बाढ़

रिमझिम रिमझिम बरस रहा है, आसमान से पानी। छाता लेकर गई मार्केट, मैं और मेरी नानी। अगले दिन रस्तोँ पे पानी, घर बाहर में पानी। स्कूलों में छुट्टी हो गई, आफिस में मनमानी। दिन दस बीते; हाल था नाजुक, छत पर सब चढ़ बैठे। नाँव बन गई कई घरों में, परेशान सब जेठे। सेना ने राशन बरसाया, कई बचाई जानें।राजनीति अब तेज हो गई, नेता लगे कमाने। इसके बाद गाँव मेँ मेरे, कभी बाढ़ जो आई। तुमसे मेरे किशन कन्हैया होगी खूब लड़ाई। --उदय भान गुप्ता

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