Wednesday, August 11, 2010

बाल कविता - चीँटी

लाल रंग की चीँटी देखी, देखी काली मैंने ।एक लाइन में चली जा रहीं,कोई नहीं अकेले।देखी मैंने उसकी हिम्मत ,चढ़ जाती दस मंजिल पर। अपने से दस गुना उठाती,लाद गठरिया पीठी पर। अनुशासन की बात सिखाती, अपने जीवन दर्शन से। मानव को जीना सिखलाती , चीँटी अपने जीवन से।

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