Saturday, August 21, 2010

बाल कविता- बरसात

ये रिमझिम है, ये मध्यम है , ये गीली है, और तरल है ॥ प्यासा बोले ये अमृत है , गर्मी बोले ये राहत है ॥ धरती बोले मेरा शाँवर , बादल बोले मोर पसीना ॥ सूरज का घूँघट बन जाती , पृथ्वी का भर जाती सीना ॥ वर्षा से धरती सज जाती , हरे -हरे कपड़े सिलवाती ॥ फूलों का गजरा बालों में , गंगा- जमुना खूब नहाती ॥ बादल अपनी कड़ी कमाई , धरती माँ को देते हैं ॥ जिससे धरती फसल उगाती , हम सब जिंदा रहते हैं ॥ कुएँ बंद हैं ; बंद तलाब , झील है गायब ; नहरेँ ख्वाब ॥तारकोल सीमेँट बिछा है , हो वर्षा से कैसे लाभ ॥ इसीलिए बारिश बदनाम , बाढ़ कर रही काम तमाम ॥ बिन बारिश सूखा आता है , बारिश से आती है बाढ़ ॥ खेतों में बैठी विधवा की , आँखें तरसेँ जेठ अषाढ़॥ - - उदय भान कनपुरिया

No comments:

Post a Comment