मैं उदय भान 'कनपुरिया' आप सभी का इस ब्लाग पर स्वागत करता हूँ। मैं अपने पिता श्री जगदीश चंद्र गुप्त एवं माता श्रीमती लक्ष्मी गुप्ता के आशीर्वाद से कविताओं की रचना करता हूँ। आशा करता हूँ कि आप सभी को पसंद आएँगी।आप मुझे विषय भेजेँ(कमेंट्स लिखकर), मैं आपको उनपर कविता देने का प्रयास करूँगा ।
Wednesday, September 8, 2010
काँमनवैल्थ गेम- कविता commonwealth games poem
धरती हमारी माँ है , जीवन हमारा इससे ॥ बचपन से हम बढ़ें हैं , शेरोँ के सुन के किस्से ॥ हाकी हमारी चाची , कुश्ती हमारे चच्चा ॥ शूटिंग में मारे बुल पे , हिन्दोस्ताँ का बच्चा ॥ गंगा के पुत्र हम हैं , सागर को चीर डालें ॥ जब तैरने को आवेँ , मछली को पार पालेँ ॥ हमने कबड्डियोँ में , सरताज को हराया ॥ शतरंज का खिलाड़ी , हमसे न बचने पाया ॥ बिलियर्ड में है सेठी , राहुल बसे अमेठी ॥ जब दौड़ते हैं मिल्खा , दुश्मन दिखाता पीठी ॥ टेनिस में पेस - भूपति , दुश्मन को मात देते ॥ देखें जो सानिया को , वो दिल को थाम लेते ॥ शीला तू अबकी दिल्ली , दुल्हन बना के रख दे ॥ भारत विजय करेगा , दुनिया को सारी चख दे ॥ - - उदय भान कनपुरिया
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