मैं उदय भान 'कनपुरिया' आप सभी का इस ब्लाग पर स्वागत करता हूँ। मैं अपने पिता श्री जगदीश चंद्र गुप्त एवं माता श्रीमती लक्ष्मी गुप्ता के आशीर्वाद से कविताओं की रचना करता हूँ। आशा करता हूँ कि आप सभी को पसंद आएँगी।आप मुझे विषय भेजेँ(कमेंट्स लिखकर), मैं आपको उनपर कविता देने का प्रयास करूँगा ।
Wednesday, September 15, 2010
आकाश
बादल भी जिसको पा न सके , आकाश उसी का नाम सुनो ॥ जिसे क्षितिज में सागर चूम रहा , आकाश उसी का नाम सुनो ॥ जो प्यार करे फिर दे आवाज , मैं उसका दामन भरता हूँ ॥अभिमानी अत्याचारी को , मैं भूमि दिखा के रहता हूँ ॥मैं ईश्वर का घर बार सदा ,है स्वर्ग नर्क का द्वार कहाँ ? वैसे तो पृथ्वी सब खींचे , पर रूहोँ का संसार कहाँ ? आकाश परिँदोँ की धरती , आकाश जहाजों की माया ॥ आकाश धरा के छत जैसा , आकाश मोहब्बत की छाया ॥ - - उदय भान कनपुरिया
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बहुत सुन्दर रचना , ...!!!बस पेश करने का तरीका थोड़ा बदल दे ,, गद्ध की तरह लगातार लिखने की बजाय पद्ध के रूप में लिखे ,,,अधिक सुन्दर लगेगी !!!
ReplyDeleteअथाह...
!!!
आपके अमूल्य सुझावों के लिए मैं आपका आभारी हूँ ।
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