मैं उदय भान 'कनपुरिया' आप सभी का इस ब्लाग पर स्वागत करता हूँ। मैं अपने पिता श्री जगदीश चंद्र गुप्त एवं माता श्रीमती लक्ष्मी गुप्ता के आशीर्वाद से कविताओं की रचना करता हूँ। आशा करता हूँ कि आप सभी को पसंद आएँगी।आप मुझे विषय भेजेँ(कमेंट्स लिखकर), मैं आपको उनपर कविता देने का प्रयास करूँगा ।
Friday, September 17, 2010
नवीन वायु सेना गान
सूरज की पहचान अमर है । गंगा अविरल बहती है ॥ नभ में मुखरित और चर्तुदिश । वायु सेना रहती है ॥ हम प्रहरी , आकाश सुरक्षित ।वादा सबसे करते हैं ॥ भारत पर जो आँख उठाए ।ऐसे दुश्मन मरते हैं ॥ हम पंक्षी हैं मुक्त गगन के । दुश्मन हमसे डरता है ॥ हम जब भी हुंकार लगा दें । माँफी माँगा करता है ॥ युद्ध काल में सर्व श्रेष्ठ हैं । शांति काल में धैर्य वती ॥सभी आपदाओं में हमने । धन और जन की वाट तकी ॥ भारत माँ हम नीली सेना । तुझको तिलक लगाऐँगे ॥ जब भी तुझ पर आए आफत । जान लुटाते जाएँगे ॥ हमको तेरी सौँ है माता । हम परचम लहराऐँगे ॥ दुश्मन को ताकत विहीन कर । मर्दन करके आएँगे ॥- - - उदय भान कनपुरिया
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Udai Bhanu ji
ReplyDeleteअच्छी कविता और अच्छे भाव है. काव्य भाव प्रधान और विचारोतेज्जक होने चाहिए. भाव वह सक्षम है अपनी बात कहवाने में. शब्द बड़े नहीं होते भाव बड़े होते हैं इसे याद रखियेगा. आपकी हर रचना अच्छी - बहुत अच्छी होगी . विश्वास कीजिए. फिर मिलेंगे..