मैं उदय भान 'कनपुरिया' आप सभी का इस ब्लाग पर स्वागत करता हूँ। मैं अपने पिता श्री जगदीश चंद्र गुप्त एवं माता श्रीमती लक्ष्मी गुप्ता के आशीर्वाद से कविताओं की रचना करता हूँ। आशा करता हूँ कि आप सभी को पसंद आएँगी।आप मुझे विषय भेजेँ(कमेंट्स लिखकर), मैं आपको उनपर कविता देने का प्रयास करूँगा ।
Wednesday, September 29, 2010
बाल कविता छुट्टी
रविवार को छुट्टी होती , बाकी दिन होता है काम । दिन में आटा चक्की चलती , रातों को हर शह आराम । दंगा, क्रिकेट , जनम , मरण दिन , भारत में हर दिन अवकाश । ऐसा चलता रहा तो इक दिन भारत बन जाएगा दास । बीजेपी का भारत बंद , कांग्रेस का भारत बंद । मत कर छुट्टी ज्यादा भइया , देश चलेगा बिलकुल मंद । - - उदय भान कनपुरिया
अयोध्या पर फैसला
पहले लोग संस्कृत बोलेँ , अब बोलेँ हैं हिंदी ॥ पहले जो साड़ी पहनें थे , अब पहनें हैं मिँनी ॥ तो फिर हिंदू मुस्लिम दोनोँ , क्यों लड़ते हैं भाई ॥ जब कुछ भी तो फिक्स नहीं है , सब बदलेगा सांई ॥ एक घाट में कई हैं जलते , एक कब्र में कई दफनते ॥ यह धरती हम सब की माता , क्यों भाई को भाई खलते ॥ समय समय पर भेष बदलते , समय समय पर बोली ॥ फिर भी इंसानों की जातेँ , खेलें खूनी होली ॥ राम कहें या कहें रहीमा , दोनों हैं ईश्वर के नाम ॥ टुकड़ों को लड़ते हो पागल , हर कण में उसका है धाम ॥ कर्म करो मत करो लड़ाई , भजते जाओ जय श्री राम ॥ हर दिल में बसते हैं प्रभु जी, जब लेते हैं उनका नाम ॥ जय श्री राम . . . - -उदय भान कनपुरिया
कविता - महात्मा गाँधी
गाँधी बाबा बड़े साहसी, उनकी ताकत श्रेष्ठ विचार ॥ आगे -आगे बापू चलते , पीछे उनके देश का प्यार ॥ भारत माँ का इक गुजराती , जिसने बदला दुनिया को ॥ अंग्रेजोँ की जड़े खोद कर , उन्हें खदेड़ा बाहर को ॥ खादी धारी एक फकीरी , चरखा काते जीते दिल ॥ धर्म स्वदेशी , कर्म स्वदेशी , आजादी उनकी मंजिल ॥ न गन न तलवार उठाते , दुश्मन के बन जाते मीत ॥ दो अक्टूबर को भारत मेँ , सब गाते हैं उनके गीत ॥ - उदय भान कनपुरिया
Friday, September 17, 2010
नवीन वायु सेना गान
सूरज की पहचान अमर है । गंगा अविरल बहती है ॥ नभ में मुखरित और चर्तुदिश । वायु सेना रहती है ॥ हम प्रहरी , आकाश सुरक्षित ।वादा सबसे करते हैं ॥ भारत पर जो आँख उठाए ।ऐसे दुश्मन मरते हैं ॥ हम पंक्षी हैं मुक्त गगन के । दुश्मन हमसे डरता है ॥ हम जब भी हुंकार लगा दें । माँफी माँगा करता है ॥ युद्ध काल में सर्व श्रेष्ठ हैं । शांति काल में धैर्य वती ॥सभी आपदाओं में हमने । धन और जन की वाट तकी ॥ भारत माँ हम नीली सेना । तुझको तिलक लगाऐँगे ॥ जब भी तुझ पर आए आफत । जान लुटाते जाएँगे ॥ हमको तेरी सौँ है माता । हम परचम लहराऐँगे ॥ दुश्मन को ताकत विहीन कर । मर्दन करके आएँगे ॥- - - उदय भान कनपुरिया
बाल कविता- कानपुर की राधा
मैं कानपुर की राधा हूँ ॥ मुझे ऐसी वैसी मत समझौ ॥ मैं लाल दुपट्टे वाली हूँ ॥ मुझे ऐसी वैसी मत समझौ ॥ मैं गोरी गोरी राधा हूँ ॥ मुझे ऐसी वैसी मत समझौ ॥ मैं टीचर जी की राधा हूँ ॥ मुझे ऐसी वैसी मत समझौ ॥मैं कृष्णा तेरी राधा हूँ ॥ मुझे ऐसी वैसी मत समझौ ॥- - उदय भान कनपुरिया
Wednesday, September 15, 2010
आकाश
बादल भी जिसको पा न सके , आकाश उसी का नाम सुनो ॥ जिसे क्षितिज में सागर चूम रहा , आकाश उसी का नाम सुनो ॥ जो प्यार करे फिर दे आवाज , मैं उसका दामन भरता हूँ ॥अभिमानी अत्याचारी को , मैं भूमि दिखा के रहता हूँ ॥मैं ईश्वर का घर बार सदा ,है स्वर्ग नर्क का द्वार कहाँ ? वैसे तो पृथ्वी सब खींचे , पर रूहोँ का संसार कहाँ ? आकाश परिँदोँ की धरती , आकाश जहाजों की माया ॥ आकाश धरा के छत जैसा , आकाश मोहब्बत की छाया ॥ - - उदय भान कनपुरिया
Saturday, September 11, 2010
सतसंग
हे भगवन सब सतसंगी हों , जीवन में सब धर्म वृती हों ॥ हो ज्ञानी या हो अज्ञानी , प्रभु चरणों में सभी रती हों ॥ राम नाम का मरम बड़ा है , कृष्ण कन्हइया यहीं खड़ा है ॥ बंद पलक से उसको देखूं , हम सबमेँ तो वही बड़ा है ॥ - - उदय भान कनपुरिया
जय गणेश
लम्बोदर है नाम उन्ही का , एक दंत भी कहते हैं॥ हर दिन सीता - राम धरा पर , नाम उन्ही का लेते हैं ॥ बल में शिव के गण हारे थे , बुद्धि में सब देव जने ॥ श्री गणेश को लड्डू प्यारे , कभी न खाते खड़े चने ॥ हम सब को देते हैं शिक्षा , मातु - पिता की सेवा का ॥ अबकी उनको भोग लगाएँ , मिलकर हम सब मेवे का ॥ - - - उदय भान कनपुरिया
Wednesday, September 8, 2010
काँमनवैल्थ गेम- कविता commonwealth games poem
धरती हमारी माँ है , जीवन हमारा इससे ॥ बचपन से हम बढ़ें हैं , शेरोँ के सुन के किस्से ॥ हाकी हमारी चाची , कुश्ती हमारे चच्चा ॥ शूटिंग में मारे बुल पे , हिन्दोस्ताँ का बच्चा ॥ गंगा के पुत्र हम हैं , सागर को चीर डालें ॥ जब तैरने को आवेँ , मछली को पार पालेँ ॥ हमने कबड्डियोँ में , सरताज को हराया ॥ शतरंज का खिलाड़ी , हमसे न बचने पाया ॥ बिलियर्ड में है सेठी , राहुल बसे अमेठी ॥ जब दौड़ते हैं मिल्खा , दुश्मन दिखाता पीठी ॥ टेनिस में पेस - भूपति , दुश्मन को मात देते ॥ देखें जो सानिया को , वो दिल को थाम लेते ॥ शीला तू अबकी दिल्ली , दुल्हन बना के रख दे ॥ भारत विजय करेगा , दुनिया को सारी चख दे ॥ - - उदय भान कनपुरिया
Tuesday, September 7, 2010
आधुनिक पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं विद्या बालन के कुर्ते में टाँका जाऊँ ॥ चाह नहीँ राखी का प्रेमी बन शादी को ललचाऊँ ॥ चाह नहीं अस्पतालों में घुसूँ , बुके में मुस्कराऊँ ॥ मुझे तोड़ लेना अमीर माली । फ्लावर शो में देना तुम भेज । मातृ भूमि के कितने बच्चे , नित दिन आते मस्ती हेतु ॥ - - - उदय भान कनपुरिया
Monday, September 6, 2010
मेरी बहन मीतू
इस जीवन की आशा है जो , सदा सरल परिभाषा है जो ॥ सबसे सुंदर मुस्कान लिए , आकाशी अभिलाषा है जो ॥ नयनोँ की आभा बनी रहे , चहरे की कांति चमक जाए ॥नित नए जोश से भर कर वो , सारी दुनिया पर छा जाए ॥ आशीष मेरा हर पल तुझ पर , ईश्वर तुझ पर उपकार करें ॥ तुम स्वस्थ रहो आजीवन भर , धन -धान्य भरा घर - द्वार रहे ॥ मीतू मेरी बहना प्यारी , मैं हर पल तुमको याद करूँ ॥ जब जो चाहो कहना मुझसे , मैं हर पल दिल के पास रहूँ ॥ - - उदय भान कनपुरिया
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