मैं उदय भान 'कनपुरिया' आप सभी का इस ब्लाग पर स्वागत करता हूँ। मैं अपने पिता श्री जगदीश चंद्र गुप्त एवं माता श्रीमती लक्ष्मी गुप्ता के आशीर्वाद से कविताओं की रचना करता हूँ। आशा करता हूँ कि आप सभी को पसंद आएँगी।आप मुझे विषय भेजेँ(कमेंट्स लिखकर), मैं आपको उनपर कविता देने का प्रयास करूँगा ।
Saturday, November 27, 2010
बाल कविता - खिड़की
घर बाहर का मेल कराती ॥ बंद खिड़कियाँ जेल बनाती ॥ सुबह सुबह जब आँखे खोलूँ ॥ सूरज के दर्शन करवाती ॥ खिड़की से दुनिया दिखती है ॥ खिड़की से दिखती है रेल ॥ दिखती है सड़कों पर गाड़ी ॥ दिखता है बच्चों का खेल ॥ मेरे घर में कई खिड़कियाँ ॥ हवा रोशनी देती हैं ॥ बंद सर्दियाँ , खुली गर्मीयाँ ॥ सबका चित हर लेती हैं ॥ - - उदय भान कनपुरिया
Tuesday, November 16, 2010
चाहत - सुख और दुख
चाहत के दो पहलू होते ,एक है सुख और दूजा दुख ॥ चाहत पूरी पाते सुख , न हो पूरी होता दुख ॥ यदि चाहत ही न हो मन में, तो क्यों सुख दुख हों जीवन में ॥ चाहत को जिसने जीता है , उसका नाम हुआ जन जन में ॥चाहत खाना चाहत खजाना , चाहत रुतबा चाहत जनाना ॥ अब तो छोटे बच्चों को भी मुश्किल होता है समझाना ॥ - - - उदय भान कनपुरिया
Sunday, November 14, 2010
बाल दिवस
चाचा का बर्थ डे जब आया ॥ दुनिया भर की खुशियाँ लाया ॥ हर बच्चे को बाल दिवस पर ॥ गोदी ले - ले खूब खिलाया ॥ श्वेत कबूतर गगन उड़ाकर ॥ हर हाथों में फूल थमाकर ॥ दुनिया भर को दिया है हमने ॥ शांति का मैसेज घर - घर जाकर ॥ बाल दिवस पर हम सब बच्चे ॥ भारत माँ से करते वादा ॥ शान बढ़ाएँगे भारत की ॥ दुनिया के हर कोने जाकर ॥ चाचा नेहरू की जय- - - उदय भान कनपुरिया
बाल कविता - तबीयत
हुजूर का मिजाज उनकी तबीयत से है ॥ इंसान की बरक्कत उसकी नियत से है ॥अच्छा खाओ तो तबीयत चंगी ॥ सोच हो बढ़िया तो हकीकत नंगी ॥ एक दूसरे की तबीयत बनाए रखना ॥ दिलों को दिलों से मिलाऐ रखना ॥ - - - उदय भान कनपुरिया
Thursday, October 28, 2010
बाल कविता - काम चोर
काम चोर भी बड़ा नाम है । काम की चोरी बड़ा काम है । बड़े देश में बड़े निकम्मे ।चाय नाश्ता हर इक पल में । काम की बातें न भई न । गप्प निठल्ले हाँ भई हाँ । देश बिकेगा बिकने दो । मान घटेगा घटने दो ॥ अपनी हर दम करें बढ़ाई ॥ मक्खन बाजी चुगली भाई ॥ - -उदय भान कनपुरिया
Wednesday, October 27, 2010
बाल कविता- मेरी मम्मी
मुझे मम्मी के हाथों की रोटी पसंद ॥ मुझे मम्मी के हाथों का स्वेटर पसंद ॥ मुझे मम्मी के गाए भजन भाते हैं ॥ मुझे मम्मी के लाए ही ड्रेस भाते हैं ॥ मेरी मम्मी ही हम सब के कपड़े सिलेँ ॥ मेरी मम्मी ही हम सब से भेँटे मिलेँ ॥ मेरे भगवन मेरी तुमसे विनती यही ॥ मेरी मम्मी को कुछ भी सतावे नहीं ॥ मेरी मम्मी की तबीयत बनाए रखना ॥ मेरी मम्मी को हरदम हँसाऐ रखना ॥ - - - - उदय भान कनपुरिया
Monday, October 25, 2010
बाल कविता - दीपावली
दीपावली महोत्सव आया , लाया खुशियाँ प्यारी ॥ आँगन हर इक दीप जलेंगे ,पुलकित हैं नर - नारी ॥ लक्ष्मी माँ की पूजा होगी , गट्टे - खील चढ़ाऐँगे ॥ जब गणेश की पूजा होगी , लड्डू भोग लगाऐँगे ॥ बिजली की झालर से सारे , घर को हम ढक देते हैं ॥ रंग , पुताई , पेँट , सफाई ,सभी लोग कर लेते हैं। हाथी , घोड़े , बैल- खिलौने , चीनी के बनवाते हैं ॥ चूड़ा - लइया संग मिठाई , बच्चे खुशी से खाते हैं ॥ अपने घर से खील - मिठाई , दूजे घर भिजवाई ॥ दीवाली में सब कहते हैं , हम सब भाई - भाई ॥ राम चंद्र की बनी अयोध्या , दीवाली थी तभी मनी । इस दिन जो लक्ष्मी को पूजे , हो जाता है वही धनी ॥ - -- - उदय भान कनपुरिया
Wednesday, October 13, 2010
दशहरा
मम्मी आज दशहरा मेला । मैं तो देखन जाऊंगी ॥ कंधे पर पापा के बैठी । रावण को जलवाऊँगी ॥ मूँगफली खीलेँ और गट्टा । मेले मे मैं खाऊँगी ॥ गुड्डा, गुड़िया , बर्तन , चूड़ी , खूब खिलौने लाऊँगी ॥ मम्मी आज ............॥ अबकी लँहगा चुनरी लूँगी । लाल दुपट्टा ओढूँगी ॥ धनुष बाँण ले के मेले से । दुष्टोँ को न छोडूँगी ॥ मम्मी आज ..............॥ - - - - उदय भान कनपुरिया
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