मैं उदय भान 'कनपुरिया' आप सभी का इस ब्लाग पर स्वागत करता हूँ। मैं अपने पिता श्री जगदीश चंद्र गुप्त एवं माता श्रीमती लक्ष्मी गुप्ता के आशीर्वाद से कविताओं की रचना करता हूँ। आशा करता हूँ कि आप सभी को पसंद आएँगी।आप मुझे विषय भेजेँ(कमेंट्स लिखकर), मैं आपको उनपर कविता देने का प्रयास करूँगा ।
Saturday, November 27, 2010
बाल कविता - खिड़की
घर बाहर का मेल कराती ॥ बंद खिड़कियाँ जेल बनाती ॥ सुबह सुबह जब आँखे खोलूँ ॥ सूरज के दर्शन करवाती ॥ खिड़की से दुनिया दिखती है ॥ खिड़की से दिखती है रेल ॥ दिखती है सड़कों पर गाड़ी ॥ दिखता है बच्चों का खेल ॥ मेरे घर में कई खिड़कियाँ ॥ हवा रोशनी देती हैं ॥ बंद सर्दियाँ , खुली गर्मीयाँ ॥ सबका चित हर लेती हैं ॥ - - उदय भान कनपुरिया
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment