मैं उदय भान 'कनपुरिया' आप सभी का इस ब्लाग पर स्वागत करता हूँ। मैं अपने पिता श्री जगदीश चंद्र गुप्त एवं माता श्रीमती लक्ष्मी गुप्ता के आशीर्वाद से कविताओं की रचना करता हूँ। आशा करता हूँ कि आप सभी को पसंद आएँगी।आप मुझे विषय भेजेँ(कमेंट्स लिखकर), मैं आपको उनपर कविता देने का प्रयास करूँगा ।
Tuesday, November 16, 2010
चाहत - सुख और दुख
चाहत के दो पहलू होते ,एक है सुख और दूजा दुख ॥ चाहत पूरी पाते सुख , न हो पूरी होता दुख ॥ यदि चाहत ही न हो मन में, तो क्यों सुख दुख हों जीवन में ॥ चाहत को जिसने जीता है , उसका नाम हुआ जन जन में ॥चाहत खाना चाहत खजाना , चाहत रुतबा चाहत जनाना ॥ अब तो छोटे बच्चों को भी मुश्किल होता है समझाना ॥ - - - उदय भान कनपुरिया
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बिल्कुल सही ....।
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