मैं उदय भान 'कनपुरिया' आप सभी का इस ब्लाग पर स्वागत करता हूँ। मैं अपने पिता श्री जगदीश चंद्र गुप्त एवं माता श्रीमती लक्ष्मी गुप्ता के आशीर्वाद से कविताओं की रचना करता हूँ। आशा करता हूँ कि आप सभी को पसंद आएँगी।आप मुझे विषय भेजेँ(कमेंट्स लिखकर), मैं आपको उनपर कविता देने का प्रयास करूँगा ।
Wednesday, December 29, 2010
अंतर्मन
अंतर्मन मेरी सुन ले बातें , कटती हैं तनहा क्यों रातेँ ॥ चाँद मुझे विरहा देता है , सर्दी में मारे है लातेँ ॥ मन चंचल है इत -उत देखे ,पता न उसका पाए ॥ जब बैठूँ मैं गुम - सुम होके , गुस्सा मुझ पर खाए ॥ मन की बातें मन ही जाने , मैं तो इतना जानूँ ॥ मेरा सब कुछ तुझ पर वारूँ , तुझको अपना मानूँ ॥ तुम्हारा प्रेमी - - - उदय भान कनपुरिया
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