इस ठंडी में क्या देखी है ?
तुमने प्यारी धूप और छाँव ॥
जिस सूरज से जलता था तन ,
गरमी में जलते थे पाँव ॥
जला अलाव तापते जन - जन ,
सुबह शाम हर गाँव - गाँव ॥
राम हमारे तुम्ही खेवइया ,
बीच भँवर है अपनी नाव ॥
छाँव कभी बारिश से चाहें ,
कभी चाहिए सूरज से ॥
छाँव माँ के आँचल की चाहें ,
छाँव प्रभु की कृपा से ॥
धूप और छाँव नहीं कुछ दूजे ,
सुख और दुख की कापी हैँ ॥
कभी धूप अच्छी लगती है ,
कभी निगोड़ी पापी है ॥
परिवर्तन ही जीवन है ,
इक रूप रहा न जाए अब ॥
धूप छाँव के इस बंधन से ,
प्रभु मुझको मुक्त करोगे कब ॥ - - -उदय भान कनपुरिया
मैं उदय भान 'कनपुरिया' आप सभी का इस ब्लाग पर स्वागत करता हूँ। मैं अपने पिता श्री जगदीश चंद्र गुप्त एवं माता श्रीमती लक्ष्मी गुप्ता के आशीर्वाद से कविताओं की रचना करता हूँ। आशा करता हूँ कि आप सभी को पसंद आएँगी।आप मुझे विषय भेजेँ(कमेंट्स लिखकर), मैं आपको उनपर कविता देने का प्रयास करूँगा ।
Wednesday, December 29, 2010
अंतर्मन
अंतर्मन मेरी सुन ले बातें , कटती हैं तनहा क्यों रातेँ ॥ चाँद मुझे विरहा देता है , सर्दी में मारे है लातेँ ॥ मन चंचल है इत -उत देखे ,पता न उसका पाए ॥ जब बैठूँ मैं गुम - सुम होके , गुस्सा मुझ पर खाए ॥ मन की बातें मन ही जाने , मैं तो इतना जानूँ ॥ मेरा सब कुछ तुझ पर वारूँ , तुझको अपना मानूँ ॥ तुम्हारा प्रेमी - - - उदय भान कनपुरिया
New year 2011
I am happy . full of whims .| It is so sun shine , not so dim .| Love is everywhere , love in my heart . | I am in pell - mell to choose new shirt .| You are my chum . You have no fear .| Be with me, in this new year .| -HAPPY NEW YEAR 2011 _ _ _ UDAY BHAN
नया साल 2011 और मँहगाई
सबसे पहले आप सभी को नए साल की हार्दिक बधाइयाँ । बीते वर्ष दूध , प्याज , टमाटर , दालें , पेट्रोल इत्यादि के दामों को हमने रातों - रात बढ़ते देखा है । 15- 20 दिनों बाद इन दामों पर सरकार का नियंत्रण हो जाता है । और इस बीच मुनाफाखोर करोड़ से अरबपति बन जाते है । 2011 में मेरा सरकार और मुनाफाखोरोँ की मंडली से प्रश्न है - 1-' कौन बनेगा करोड़पति ? ' , 2- ' कौन बनेगा अरबपति ? ' मेरे पिता जी का कहना है कि ' जिस घर में परिवार का सदस्य ही चोर हो उस घर को बर्बाद होने से कोई नहीं बचा सकता । ' हमारे देश का वही हाल होने वाला है । मेरे देश के चोरोँ !/ भ्रष्टाचारियों ! 2011 में गंगा नहाओ , सुधर जाओ । - आपका अपना भारतवासी - - ' उदय भान कनपुरिया '।
कंबल
ठंड लग रही कंबल दे दो लाल हो चाहे नीला ॥ पर इतना तो ध्यान रहे की हो न बिलकुल गीला ॥ नेता ने कंबल लुटवाए बड़े बड़ों ने लूटे ॥ उन लोगों को न मिल पाए जिनके करम थे फूटे ॥ फुटपाथोँ पर बिन कंबल के कई स्वर्ग को तारे ॥ बाँटो कंबल मर जाएँगे कंबल बिना बेचारे ॥ - - - उदय भान कनपुरिया
Friday, December 24, 2010
नया साल 2011
नए साल पर तुम्हें मुबारक ॥ हर इक अच्छी बात ॥ तुम हो मेरी मैं हूँ तेरा ॥ अपनी है हर रात ॥ चाँद तुम्हें अपनी कर लेगा ॥ घर में रहना छुपकर ॥ सुंदर महिला जल जाएँगी ॥ दिखेँगी मुड़ - मुड़ कर ॥ तुम हो प्यारी तुम हो सच्ची ॥ नया साल कहता है ॥ कभी कभी मस्ती कर लेना ॥ भी अच्छा रहता है ॥ happy new year 2011. - - - uday bhan knpuriya
Thursday, December 23, 2010
भ्रष्टाचार
आम आदमी मंहगाई की , मार झेलता जाए ॥ मौसम आए या न आए , रेट तो बढ़ता जाए ॥ राजनीति सब्जी पर होती ॥ राशन - भ्रष्टाचार ॥ इतना पैसा कमा के सोना , हीरे जड़ी मज़ार ॥ इस पैसे से क्या कर लोगे , क्या पा लोगे इस जीवन में ॥ साथ नहीं जाता है कुछ भी , जब जाना हो उसके घर में ॥ काम क्रोध माया सब झूठी , काम नहीं कुछ आना ॥ बाँध पुटरिया सत कर्मों की , पार तुम्हें है जाना ॥ मत कर भ्रष्टाचार रे बंधु , मत कर भ्रष्टाचार ॥ झूठा यह संसार है प्यारे , सच्चा पालनहार ॥ - - - उदय भान कनपुरिया
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