Saturday, November 27, 2010

बाल कविता - खिड़की

घर बाहर का मेल कराती ॥ बंद खिड़कियाँ जेल बनाती ॥ सुबह सुबह जब आँखे खोलूँ ॥ सूरज के दर्शन करवाती ॥ खिड़की से दुनिया दिखती है ॥ खिड़की से दिखती है रेल ॥ दिखती है सड़कों पर गाड़ी ॥ दिखता है बच्चों का खेल ॥ मेरे घर में कई खिड़कियाँ ॥ हवा रोशनी देती हैं ॥ बंद सर्दियाँ , खुली गर्मीयाँ ॥ सबका चित हर लेती हैं ॥ - - उदय भान कनपुरिया

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