Tuesday, November 16, 2010

चाहत - सुख और दुख

चाहत के दो पहलू होते ,एक है सुख और दूजा दुख ॥ चाहत पूरी पाते सुख , न हो पूरी होता दुख ॥ यदि चाहत ही न हो मन में, तो क्यों सुख दुख हों जीवन में ॥ चाहत को जिसने जीता है , उसका नाम हुआ जन जन में ॥चाहत खाना चाहत खजाना , चाहत रुतबा चाहत जनाना ॥ अब तो छोटे बच्चों को भी मुश्किल होता है समझाना ॥ - - - उदय भान कनपुरिया

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