Wednesday, September 8, 2010

काँमनवैल्थ गेम- कविता commonwealth games poem

धरती हमारी माँ है , जीवन हमारा इससे ॥ बचपन से हम बढ़ें हैं , शेरोँ के सुन के किस्से ॥ हाकी हमारी चाची , कुश्ती हमारे चच्चा ॥ शूटिंग में मारे बुल पे , हिन्दोस्ताँ का बच्चा ॥ गंगा के पुत्र हम हैं , सागर को चीर डालें ॥ जब तैरने को आवेँ , मछली को पार पालेँ ॥ हमने कबड्डियोँ में , सरताज को हराया ॥ शतरंज का खिलाड़ी , हमसे न बचने पाया ॥ बिलियर्ड में है सेठी , राहुल बसे अमेठी ॥ जब दौड़ते हैं मिल्खा , दुश्मन दिखाता पीठी ॥ टेनिस में पेस - भूपति , दुश्मन को मात देते ॥ देखें जो सानिया को , वो दिल को थाम लेते ॥ शीला तू अबकी दिल्ली , दुल्हन बना के रख दे ॥ भारत विजय करेगा , दुनिया को सारी चख दे ॥ - - उदय भान कनपुरिया

No comments:

Post a Comment