Wednesday, December 29, 2010

अंतर्मन

अंतर्मन मेरी सुन ले बातें , कटती हैं तनहा क्यों रातेँ ॥ चाँद मुझे विरहा देता है , सर्दी में मारे है लातेँ ॥ मन चंचल है इत -उत देखे ,पता न उसका पाए ॥ जब बैठूँ मैं गुम - सुम होके , गुस्सा मुझ पर खाए ॥ मन की बातें मन ही जाने , मैं तो इतना जानूँ ॥ मेरा सब कुछ तुझ पर वारूँ , तुझको अपना मानूँ ॥ तुम्हारा प्रेमी - - - उदय भान कनपुरिया

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