Wednesday, September 15, 2010

आकाश

बादल भी जिसको पा न सके , आकाश उसी का नाम सुनो ॥ जिसे क्षितिज में सागर चूम रहा , आकाश उसी का नाम सुनो ॥ जो प्यार करे फिर दे आवाज , मैं उसका दामन भरता हूँ ॥अभिमानी अत्याचारी को , मैं भूमि दिखा के रहता हूँ ॥मैं ईश्वर का घर बार सदा ,है स्वर्ग नर्क का द्वार कहाँ ? वैसे तो पृथ्वी सब खींचे , पर रूहोँ का संसार कहाँ ? आकाश परिँदोँ की धरती , आकाश जहाजों की माया ॥ आकाश धरा के छत जैसा , आकाश मोहब्बत की छाया ॥ - - उदय भान कनपुरिया

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना , ...!!!बस पेश करने का तरीका थोड़ा बदल दे ,, गद्ध की तरह लगातार लिखने की बजाय पद्ध के रूप में लिखे ,,,अधिक सुन्दर लगेगी !!!


    अथाह...

    !!!

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  2. आपके अमूल्य सुझावों के लिए मैं आपका आभारी हूँ ।

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